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________________ + ६४ भगवान महावीर के हजार उपदेश २४३ जह सीहो व मिय गहाय, मच्चू नर नेइ हु अतकाले । न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मि सहारा भवंति || २४४ संसारमावन्न परस्स अट्ठा, साहारण ज च करेइ कम्म | कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले, न बधवा बधवय उवेन्ति ॥ २४५ वेया अहीया न भवति ताण, भुत्ता दिया निति तम तमेण । जाया य पुत्ता न हवति ताण, को नाम ते अणुमन्तेज्ज एयं ॥ २४६ चिच्चा दुपय च चउप्पय च, खेत्त हि धण-धन्न च सव्व । अम्मप्पवीओ अवसो पयाइ, पर भव सुन्दर - पावगं वा ॥ २४७ भावसच्चेण भावविसोहि जणयई । २४८ भावविसोहीए वट्टमाणे जीवे अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भट्ठे इ । २४३ उत्त० १३।२२ २४६. उत्त० १३।२४ २४४. उत्त० ४|४ २४७. उत्त० २६१५० २४५. उत्त० १४/१२ २४८. उत्त० २६१५०
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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