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________________ धर्म और दर्शन (तप) ५६ २२१ तप का आचरण करना तलवार की धार पर चलने के समान दुष्कर है। २२२ इच्छानिरोध-तप से मोक्ष की प्राप्ति होती है। २२३ तप की महिमा तो प्रत्यक्ष मे दिखलाई देती है, किन्तु जाति की महिमा तो कोई नजर नहीं आती हैं । २२४ तप के द्वारा अपने को कृश करो, अपने को जीर्ण करो, भोग-वृत्ति को जर्जर करो। २२५ तप से पूर्व-बद्ध कर्मों का नाश करो। २२६ तप दो प्रकार का बतलाया है-बाह्य और आभ्यतर । बाह्य तप छ प्रकार का कहा है, इसी प्रकार आभ्यन्तर तप भी छ प्रकार का है। २२७ अनशन, ऊनोदरी, भिक्षाचरी, रसपरित्याग, काय-क्लेश और प्रति सलोनता ये बाह्य तप के छ भेद है । २२८ प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और कायोत्सर्ग-ये आभ्यन्तर तप के छ भेद हैं । २२६ तप से आत्मा का शुद्धिकरण होता है । २३० तप से व्यवदान–पूर्व-कर्मों का क्षय कर आत्माशुद्धि प्राप्त करता है ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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