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________________ धर्म और दर्शन (ब्रह्मचर्य) ३६ १४५ गो पुरुप स्त्रियो द्वारा सेवित नहीं है वे सतीर्ण अर्थात् सिद्ध पुरुपो के सदृश कहे गये है। १४६ ब्रह्मचारी को वह स्थान दूर से ही त्याग देना चाहिए, जहाँ रहने से कुशील की वृद्धि होती हो। १४७ जैसे मणियो मे वैडूर्यमणि श्रेष्ठ है, भूषणो मे मुकुट प्रवर है, वस्त्रो मे क्षौम-युगल [वहुमूल्य रेशमी वस्त्र] मुख्य है, पुष्पो मे अरविन्द पुप्प उत्कृष्ट है, चन्दनो मे गोशीर्ष चन्दन प्रकृष्ट है, औषधियुक्त पर्वतो मे हिमवान् श्रेष्ठ है, नदियो मे सीतोदा वडी है, समुद्र मे स्वयम्भूरमण वृहत्तम है तथा हाथियो मे ऐरावत, स्वर्गों मे ब्रह्मस्वर्ग [पञ्चमस्वर्ग] दानो मे अभयदान, मुनियो मे तीर्थकर और वनो मे नन्दनवन उत्कृष्ट है, वैसे ही व्रतो मे ब्रह्मचर्य सर्वश्रेष्ठ है। १४८ ब्रह्मचारी न होते हुए भी जो यह कहे कि "मैं ब्रह्मचारी हूँ' वह गायो के समह के वीच गर्दभ की तरह विस्वर नाद करता है।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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