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________________ ३६ भगवान महावीर के हजार उपदेश १३८ विभूसा इत्थिससग्गो, पणीय रसभोयण । नरस्सत्तगवेसिस्स, विस तालउड जहा ॥ १३६ जेहिं नारीण सजोगा, पूयणा पिट्ठओ कया । सव्वमेय निराकिच्चा, ते ठिया सुसमाहिए || १४० स इसी, समुणी, स सजए, स एव भिक्खू, जे सुद्ध चरइ वभचेरं । १४१ एक्कमि बभचेरे जमिय आराहियमि, आराहियं वयमिण सव्व, तम्हा निउएण बभचेर चरियव्व । १४२ अबभचरिय घोर, पमाय दुरहिट्ठिय | नायरति मुणी लोए, भेयाययणवज्जिणो ॥ १४३ अदसण चेव अपत्यण च, अचितण चेव अकित्तण च । इत्थी जणस्साऽऽरियज्झाण जुग्ग, हिय सया बभवए रयाण ॥ १४४ जहा दवग्गी परिघणे वणे, समारुओ नोवसम उवेइ | एविन्दियग्गी वि पगामभोइणो, न बभयारिस्सहियाय कस्सई ॥ १३८ दश० ८५७ १४१ प्रश्न ० ४।१ १४४ उत्त० ३२।११ १३६ सूत्र० १|३|४|१७ १४२ दश० ६।१५ १४० प्रश्न० ४।१ १४३ उत्त० ३२/१५
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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