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________________ यज्ञ ९१७ हे भिक्षो । हम किस प्रकार का यज्ञ करे, जिसके करने से पाप कर्मों का नाश हो सके । तथा हे यक्षपूजित सयत | आप हमे बतायें, कि कुशल पुरुषो ने सुइष्ट-श्रेष्ठ यज्ञ का विधान किस प्रकार किया है ? ६१८ मन और इन्द्रियो का दमन करनेवाले छ काय के जीवो की हिंसा नही करते, असत्य और चौर्य का सेवन नहीं करते । परिग्रह, स्त्री, मान और माया इन सबका भली-भाँति त्याग करके विचरण करते हैं । ११8 जो पाँच सवरो से सुसवृत्त होता है, जो असयम-जीवन जीने की इच्छा नही करता और परिषहो को सहन करते हुए, जिन्होंने शरीर के प्रति ममत्त्व बुद्धि का त्याग कर दिया है, वे ही पवित्र हैं और वे ही जीव कर्मों के जय करनेवाले श्रेष्ठ यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं । १२० हे भिक्षो | तुम्हारी अग्नि कौनसी है ? और कौन-सा अग्नि-कुण्ड है ? तुम्हारे घी डालने की करछियाँ कौन-सी हैं ? तुम्हारे अग्नि को जलाने के कण्डे कौन-से हैं ? तुम्हारे समिधा और शान्तिपाठ कौन-सा है ? और किस हवन से तुम ज्योति को प्रसन्न करते हो ? ६२१ तप ज्योति अर्थात् अग्नि है । जीव ज्योति-स्थान है। योग (मन, वचन और काया की सत् प्रवृत्ति) घी डालने की करछियाँ हैं । शरीर अग्नि जलाने के कण्डे है। कर्म ईंधन है। सयम की प्रवृत्ति शान्ति-पाठ है । इस प्रकार में ऋपि प्रशस्त-अहिंसक होम करता हूँ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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