SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षा और व्यवहार (ज्ञानी-अज्ञानी) २४६ ८७१ पण्डित मुनि बाल-भाव और अबाल-भाव की तुलना करे, और बालभाव को छोडकर अवाल-भाव का सेवन करे । ८७२ अनन्त ज्ञानी आत्माओ ने प्रमाद को कर्मोपादान का कारण बतलाया है और अप्रमाद को कर्मक्षय का । इसी कर्मोपादान और कर्मक्षय के कारण ही मनुष्य को वाल और पण्डित कहा जाता है । ८७३ यदि पण्डित पुरुष किसी प्रकार अपनी आयु का क्षय काल जान ले, तो उससे पूर्व शीघ्र ही वह सलेखनारूप शिक्षा को अपना ले । ८७४ अज्ञानी और मन्दमति मूढ जीव ससार मे उसी प्रकार फंस जाते हैं जैसे श्लेष्म-कफ मे मक्खी। ८७५ अज्ञानी जन ऐसा सोचते हैं कि परलोक हमने देखा नही है किन्तु यह विद्यमान काम-भोग का आनन्द तो चक्षु-दृष्ट है, आँखो के सामने है। . ८७६ मूढ प्राणी इस अनत ससार मे बार-बार लुप्त होते रहते हैं अर्थात् जन्म मरण करते रहते हैं ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy