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________________ शिक्षा और व्यवहार (अज्ञान) २४५ ८५६ अज्ञानी माधक उस जन्मान्ध व्यक्ति के समान है जो छिद्रवाली नौका पर चढकर नदी किनारे पहुंचना तो चाहता है किंतु किनारा आने के पूर्व ही बीच प्रवाह मे डूब जाता है । ८६० जाल मे फसी हुई मछलियो की तरह अज्ञानात्मा विषाद को प्राप्त होते है। मूर्ख तीन प्रकार के कहे हैं-ज्ञान से मूर्ख, (ज्ञान हीन) दर्शन से मूर्ख (श्रद्धा होन) चारित्र से मूर्ख (आचरण हीन)। ८६२ हे मनुष्य । तू बाल- अज्ञानी जीव की मूर्खता को देख, वह अधर्म को ग्रहण कर, धर्म को छोड, अमिष्ठ वन कर नरक मे उत्पन्न होता है। हे मनुष्य तू सब धर्मों का परिपालन करनेवाले धीर पुरुष की धीरता को देख, वह अधर्म को छोड मिष्ठ बन कर देवो मे उत्पन्न होता है। ८६४ जो मनुष्य भविष्य मे होने वाले दुखो की तरफ न देख कर केवल वर्तमान-सुख को ही खोजते हैं । वे आयु और यौवन काल बीत जाने पर पश्चात्ताप करते है।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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