SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षा और व्यवहार ( विषयभोग - मुक्ति ) ८२२ विपयातुर आत्मा ही दूसरे प्राणियो को सताप पहुँचाते हैं । ८२३ कामभोग प्राप्त होने पर भी उन की कामना न करे । ८२४ जो मनुष्य विषय भोगो से विरक्त (उदास) रहते हैं, वे दुस्तर ससारवन को पार कर जाते हैं । २३५ ८२५ वमन किये हुये [त्यक्त विषयो] को फिर से पीने की इच्छा करते हो, इससे तो तुम्हारा मरना श्रेय है । ८२६ ससारासक्त तथा विषय-भोगो मे मूच्छित असयमी मनुष्य वार-बार मोह को प्राप्त होते रहते हैं । ८२७ काम - भोगो का त्याग करना अत्यन्त कठिन है । अधीर पुरुष तो इन्हे सरलता से छोड ही नही सकते । ८२८ काम-भोगो के सब प्रकारो मे दोप देखता हुआ भी आत्म-रक्षकसाधक उन मे कभी लिप्त नही होता । ८२६ ये काम-भोग कर्मों का बन्ध करनेवाले हैं । ८३० ज्ञानी- पुरूप ही भोग का परित्याग कर सकता है । ८३१ जो साधक काम-भोग के रस मे आसक्त हो जाते हैं वे असुरजाति निम्न श्रेणी के देवो मे उत्पन्न होते हैं ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy