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________________ रात्रिभोजन त्याग ७६८ सयमी - आत्मा सूर्यास्त से लेकर पुन सूर्योदय तक सब प्रकार के आहार की मन से भी इच्छा न करे । ७६६ ससार मे बहुत से त्रस और स्थावर प्राणी अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं, वे रात्रि मे दृष्टिगत नही होते, तो रात्रि मे भोजन कैसे किया जा सकता है ? ८०० कही जमीन पर कुछ पडा होता है, कही बीज विखरे होते है और कही पर सूक्ष्म कीड़े-मकोडे होते हैं, दिन मे तो उन्हे टाला जा सकता है, किन्तु रात्रि मे उन्हे वचा कर भोजन कैसे किया जा सकता है। ? ८०१ अन्न आदि चतुर्विध आहार का रात्रि मे सेवन नही करना चाहिए तथा दूसरे दिन के लिए भी रात्रि मे खाद्य पदार्थ का संग्रह करना निषिद्ध है । अत रात्रि भोजन का त्याग वास्तव मे बडा दुष्कर है । ८०२ जिस प्रकार दूर-देशान्तर से व्यापारी द्वारा लाये हुए बहुमूल्य रत्नो को राजा लोग ही धारण कर सकते हैं । इसी प्रकार तीर्थंकर द्वारा कथित रात्रि - मोजन त्याग के साथ पचमहाव्रतो को कोई विशिष्ट आत्मा ही धारण कर सकती है । ८०३ रात्रि - भोजन के त्याग से जीव अनाश्रव होता है । ८०४ निर्ग्रन्थ मुनि, रात्रि के समय किसी भी प्रकार का आहार नहीं करते ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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