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________________ शिक्षा और व्यवहार (भाषा-विवेक) २२५ ७८५ वचनगुप्ति से निर्विकार-अवस्था प्राप्त होती है । ७८६ जो साधक विचार पुरस्सर नही बोलता, उसका वचन कभी न कभी असत्य के दूपण से दूषित हो सकता है । ७८७ कभी कठोर वचन नही बोलना चाहिए । ७८८ विना पूछे नही वोलना चाहिए । ७८४ यतनाशील यति मरम्म, समारम्भ और आरम्भ मे प्रवर्तमान वाणी का निवर्तन-नियन्त्रण करे । ७६० गुरुजन किसी से बातचीत कर रहे हो, तब वीच मे नही बोलना चाहिए। ७६१ झूठवाली भापा निरर्थक है । ७६२ आत्मार्थी साधक दृष्ट [अनुभूत] परिमित, अमदिग्ध, परिपूर्ण, और स्पष्ट वाणी का प्रयोग करे। ७६३ मुनि सदा वचन-शुद्धि का विचार करे तथा दोपयुक्त वाणी का परित्याग करे।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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