SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षा और व्यवहार (भाषा-विवेक) २२३ ७७६ जिस अर्थ मे अपने को कुछ भी शका जैसा लगता हो, उस के बारे मे "यह ऐसा ही है" इस प्रकार निश्चित भाषा का प्रयोग न करे । ७७७ प्रवुद्ध भिक्षु ऐसी भापा बोले जो सभी के लिए हितकर और प्रियकर हो। ७७८ अपने से बडे गुरुजन जब वोलते हो या विचारचर्चा करते हो तो उन के बीच न बोले। ७७४ कलह बढानेवाली बात नही कहनी चाहिए। ७८० जो निश्चयकारिणी और अप्रियकारिणी भापा का प्रयोग नहीं करता वह पूज्य है। ७८१ लोहे के कांटे अल्पकाल तक दुख देनेवाले होते हैं और वे भी शरीर से सहजतया निकाले जा सकते हैं। किन्तु दुष्ट और कठोर वाणी-रूपी काँटे सहजतया नही निकाले जा सकते, वे जन्म-जन्मान्तर के वर की परम्परा को बढानेवाले महाभयानक होते हैं। ७८२ जो कानो मे प्रवेश करते हुए वचनरूपी कांटो को सहन करता है, वही पूज्य है। ७८३ विना बुलाए बीच मे कुछ नहीं बोलना चाहिए । ७५४ बहुत नही बोलना चाहिए।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy