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________________ भाषा - विवेक ७६८ जो विचार पुरस्सर बोलता है, वही सच्चा निर्ग्रन्थ है । ७६६ जो कुछ बोला जाय — पहले विचार कर बोलना चाहिए । ७७० चिन्तनशील पुरुष सदा विभज्यवाद अर्थात् स्याद्वाद को सलक्षित कर वचन का प्रयोग करे । ७७१ साधक आवश्यकता से अधिक न बोले । ७७२ साधक को छ तरह के वचन नही वोलने चाहिये --असत्य वचन, तिरस्कारमय वचन, झिडकते हुए वचन, कर्कश - कठोर वचन, अविचारपूर्ण वचन, शान्त हुए कलह को फिर से उद्बुद्ध करनेवाले वचन । ७७३ वाचालता सत्य वचन का विघात करनेवाली होती है । ७७४ जिस बात का स्वयं को परिज्ञान नही है, उस के सम्वन्ध मे "यह ऐसा ही है" इस प्रकार निश्चयात्मक वचन न बोले । ७७५ जो विचार पुरस्सर और परिमित भाषा बोलता है वह सज्जनो द्वारा प्रशसा प्राप्त करता है । 1
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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