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________________ शिक्षा और व्यवहार (शिक्षा) २१७ ७५४ आचार प्रज्ञप्ति का ज्ञाता-वाक्य-रचना के नियमो को जानने वाला तथा दृष्टिवाद का अध्ययन करनेवाला मुनि भी कदाचित बोलते समय वचन से स्खलित हो जाय तो उनके अशुद्ध वचन को जानकर मुनि उनकी हंसी न करे। ७५५ साधक सर्वत्र मत्सर-ईर्ष्याभाव रहित रहे । ७५६ पण्डित पुरुप को कभी किसी से कलह-झगडा नही करना चाहिये । ७५७ चार व्यक्ति शिझा देने के अयोग्य कहे हैं, अविनीत, स्वादेन्द्रिय मे गृद्ध, क्रोधी, और कपटी। ७५८ किसी की कोई गोपनीय बात हो तो उसे कभी प्रकट नही करनी चाहिए। ७५६ जुआ खेलना मत सीखो, और धर्म के विरुद्ध मत बोलो। ७६० पीतवर्ण (पीला) पत्ता पृथ्वी पर गिरता हुआ अपने साथी हरे पत्तो से कहता है-"मेरे साथी | आज जैसे तुम हो एक दिन हम भी ऐसे ही थे, और आज जैसे हम हैं एक दिन तुम्हे भी ऐसा ही होना होगा।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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