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________________ शिक्षा और व्यवहार (शिक्षा) २१५ ७४५ आयुष्मन् । यतनापूर्वक चलने, यतनापूर्वक खडा होने, यतनापूर्वक बैठने, यतनापूर्वक सोने, यतनापूर्वक खाने और यतनापूर्वक बोलनेवाला पाप-कर्म का वन्धन नही करता। ७४६ सुशिक्षित व्यक्ति स्खलना होने पर भी किसी पर दोषारोपण नही करता और न कभी मित्रो पर क्रोध ही करता है। यहां तक कि अप्रिय मित्र की परोक्ष मे भी प्रशसा ही करता है। ७४७ प्रभु की आज्ञा पालन करने मे जो व्यक्ति श्रद्धा-शील होता है, वह मेधावी बुद्धिमान कहलाता है । ७४८ जो प्रभु-आज्ञा की सम्यग् आराधना करता है, वह पण्डित है तथा पापकर्मों से अलिप्त रहता है । ७४६ बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि वह भगवान की आज्ञा का उल्लघन न करे। ७५० आप्त पुरुषो द्वारा वताए हुए तत्व को जानकर तदनुसार कार्य करनेवाले को कही भी भय की स्थिति का सामना नही करना पडता । ७५१ श्रद्धाशील वीरपुरुप को शास्त्रानुसार सदा पराक्रम करना चाहिये । ७५२ इच्छा तथा लोभ का सेवन नही करना चाहिए। ७५३ कल्याणभागी के लिये लज्जा, दया, सयम और ब्रह्मचर्य-ये आत्मविशुद्धि के साधन है।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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