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________________ साधक - जीवन ७१६ साधक सुख-सुविधा की भावना से दूर होकर उपशात तथा माया रहित बन कर विचरण करे । ७१७ सुव्रती साधक कम खाये कम पीये, तथा कम बोले ७१८ कुछ साधक सिंहवृत्ति से साधना पथ पर आते हैं, और सिंह-वृत्ति से ही रहते हैं । कुछ सिंहवृत्ति से आते है, किंतु बाद मे शृगालवृत्ति अपना लेते है । कुछ शृगालवृत्ति से आते हैं, किंतु बाद मे सिंहवृत्ति अपना लेते हैं । कुछ शृगालवृत्ति लिए आते हैं और शृगालवृत्ति से ही चलते रहते हैं । ७१६ जो साधक अपने इच्छित फल की प्राप्ति मे सन्तुष्ट रहता है और दूसरो के लाभ की आकाक्षा नही रखता वह सुखपूर्वक सोता है । ७२० ज्ञानी आत्मा अदीनभाव से भिक्षा की गवेपणा करे, किसी भी स्थिति मे मन मे विषाद न आने दे । ७२१ जो साधक पूजा-प्रतिष्ठा के चक्कर मे पडा है, यश का कामी है, मानसम्मान का पिपासु है, उनके लिये अनेक प्रकार का दम्भ रचता हुआा बहुत पाप कर्म का सचय करता है ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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