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________________ कर्मवाद ६७५-६७६ ज्ञानवरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय-इस प्रकार सक्षेप मे ये आठ कर्म बतलाये हैं। ६७७ जिस प्रकार वन मे विचरण करनेवाले मृग-शावक सिंह की आशका करते हुए उनसे दूर-दूर रहते हैं, उसी प्रकार मेधावी पुरुष धर्म-तत्त्व को समझने पर पाप-कर्म का दूर से ही परित्याग कर देता है । ६७८ अच्छे कर्म का फल अच्छा होता है। बुरे कर्म का फल बुरा होता है। ६७६ जिस तुवे पर मिट्टी की परतें लगाने से वह भारी हो जाता है और पानी मे डुवाने पर डूब जाता है । ठीक वैमे ही हिंसा असत्य, चोरी, व्यभिचार, तथा मूर्छा-मोह आदि आश्रवरूपी कर्म करने से बात्मा पर कर्मरूपी मिट्टी की परतें जम जाती हैं । और यह भारी बनकर अधोगति को प्राप्त होती है। ६८० यदि उसी तुवे की मिट्टी की परते हटादी जाय तो वह हलका होने के कारण पानी पर तैरने लग जाता है, वैसे ही यह आत्मा भी जव कर्मबन्धनो से सर्वथा मुक्त हो जाती है, तव ऊर्ध्वगति प्राप्त कर लोक के अग्र-भाग पर जा कर स्थिर हो जाती है।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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