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________________ जीवन और कला (श्रावकधर्म) १५५ ५४५ सामायिक से जीव सावद्ययोग से विरति-निवृत्ति का उपार्जन करता चतुर्विंशति-स्तव से जीव सम्यक्त्व की विशुद्धि को प्राप्त होता है। ५४७ वन्दना से जीव नीच कुल मे उत्पन्न होने जैसे कर्मो को क्षीण करता है । और ऊंचे कुल मे उत्पन्न करनेवाले कर्म का अर्जन करता है। ५४८ प्रतिक्रमण से जीव व्रत के छिद्रो को रोक देता है। ५४६ कायोत्सर्ग से जीव अतीत और वर्तमान के अतिचारो की विशुद्धि करता है। प्रत्याख्यान से जीव आश्रव द्वार का निरोध करता है । जिस साधक की आत्मा सयम मे, नियम मे, तथा तप मे तल्लीन है, उसी की वास्तविक सामायिक है । ऐसा केवली भगवन्त ने फरमाया ५५२ जो साधक त्रस और स्थावर सभी प्राणियो के प्रति समभाव रखता है, उसी की वास्तविक सामायिक है। ऐसा केवली भगवन्त ने फरमाया है। ५५३ स्वाध्याय करते रहने से समस्त दु खो से मुक्ति प्राप्त होती है। .
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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