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________________ मनोनिग्रह ५३१ मन एक साहसिक, भयकर और दुष्ट घोडे के समान है, जो चारो तरफ दौडता रहता है। ५३२ एक को जीत लेने पर पांच जीते गए, पाँचो को जीत लेने पर दस जीते गए, दसो को जीत कर मैंने सभी शत्रुओ को जीत लिए हैं । ५३३ सयमशील मुनि सरम्भ, समारम्भ और आरम्भ मे प्रवर्तमान मन को निवृत्त करे अर्थात् उसकी प्रवृत्ति को रोके । मनोगुप्तता से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता है । ५३५ एकाग्र-चित्त वाला जीव अशुभसकल्पो से मन की रक्षा करनेवाला तथा सयम की सम्यग् आराधना करनेवाला होता है । योग सत्य से जीव मन, वचन और काया की प्रवृत्ति को विशुद्ध करता ५३७ इन्द्रियो के सुमनोज्ञ विषयो मे मन को कभी भी सलग्न न करे । समदृष्टिपूर्वक सयम यात्रा में विचरण करते हुये भी यदि कदाचित् सयमी पुरुष का मन सयममार्ग से विचलित होने लगे तो उस समय उसे यह विचार करना चाहिए कि "यह मेरी नहीं है और न मैं ही उनका हूँ।'' इस प्रकार सुविचार के अकुश से मन मे उत्पन्न क्षणिक आसक्ति को दूर करे।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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