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________________ जीवन और कला ( श्रमण ) ४६५ सयमी मुनि लेप लगे उतना भी सग्रह न करे, वासी न रखे । ४६६ मुनि कर्म आने के सभी अप्रशस्त द्वारो को सब ओर से बन्द कर अनाश्रवी बन जाता है । ४६७ सयमी साधक अध्यात्म तथा ध्यानयोग से आत्मा का दमन एव अनुशासन करनेवाला होता है । ४६८ भिक्षु सर्व जीवो के प्रति दयानुकम्पी रहे । १३१ ૪૬૨ समभाव की साधना करने से श्रमण होता है । ४७० ज्ञान की आराधना - मनन करने से मुनि होता है । ४७१ जैसे मेरु पर्वत को तराजू से तोलना बहुत ही कठिन कार्य है, वैसे ही निश्चल और निर्भय-भाव से श्रमण-धर्म का पालन करना बहुत ही कठिन कार्य है । ४७२ जो सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन से सम्पन्न हो, सयम और तप मे निरत हो, ऐसे गुणो से युक्त सयमी साधक को ही साधु कहना चाहिये । ४७३ सयमी किसी भी प्राणी को पीडा न पहुंचावे । जो सयम के पालन मे किसी प्रकार का खेद नही करते हैं, वे पराक्रमी मुनि इन्द्रादि द्वारा प्रशसित होते हैं ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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