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________________ जीवन और कला (विनय) १११ ३८६ वृक्ष के मूल से स्कन्ध उत्पन्न होता है स्कन्ध के पश्चात् शाखाएँ, और शाखाओ मे से प्रशाखाएँ निकलती है। इस के पश्चात् फूल, फल और रस उत्पन्न होता है। ३६० इसी प्रकार धर्म रूपी वृक्ष का मूल विनय है, और उसका अन्तिम फल मोक्ष है । विनय से मनुष्य को कीर्ति, प्रशसा और श्रुतज्ञान आदि समस्त इष्ट तत्त्वो की प्राप्ति होती है। ३६१ जिनके पास धर्म-शिक्षा प्राप्त करे, उनके प्रति सदा विनय भाव रखना चाहिए। ३६२ विनीत शिष्य आचार्य को कुपित हुए जानकर प्रीतिकारक वचनो से उन्हे प्रसन्न करे, हाथ जोडकर उन्हे शान्त करे और अपने मुंह से ऐसा कहे कि "पुन मैं ऐसा नही करूँगा” । विनय स्वय एक तप है और श्रेष्ठ धर्म है । ३६४ वैयावृत्त्य-सेवा से जीव तीर्थंकर नाम गोत्र जैसे उत्कृष्ट पुण्यकर्म का उपार्जन करता है। ३६५ रोगी की सेवा के लिए सदा जागरूक रहना चाहिए । ३६६ कलह और जीवहिंसा को वर्जनेवाला व्यक्ति सुविनीत होता है । ३९७ विनय से साधक को शील-सदाचार मिलता है । अत उस की खोज करनी चाहिए।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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