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________________ धर्म और दर्शन (मोक्ष) १०५ ३७४ जिसने सर्व-आश्रवो का निरोध कर दिया है, तथा सर्वकर्मों का क्षय कर दिया है, वह विपुलोत्तम शाश्वत मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । ३७५ गुरु और वृद्ध [ स्थविर मुनियो ] की सेवा करना, अज्ञानी - जनो का दूर से ही वर्जन करना, स्वाध्याय करना, एकान्तवास करना, सूत्र और अर्थ का चिन्तन करना, तथा धैर्य रखना, यह मोक्ष का मार्ग है । ३७६ जो साधक परीषहो पर विजय पाता है उस के लिए मोक्ष सुलभ है | ३७७ घृत से अभिसिञ्चित अग्नि जिस प्रकार पूर्ण प्रकाश को पाती है, उसी प्रकार सरल एवं शुद्ध साधक ही पूर्ण निर्वाण-मोक्ष को प्राप्त होता है । ३७८--३७६ जिस प्रकार कोई म्लेच्छ ( जगली) नगर की अनेक विध-विशेषताओ को देख लेने पर भी उपमा न मिलने से उस का वर्णन करने मे वह असमर्थ होता है । इसी प्रकार सिद्धात्माओ का सुख अनुपम होता है । उनकी तुलना नही हो सकती । ३८० सर्वकार्य सिद्ध होने वे सिद्ध हैं, सर्वतत्व के पारगामी होने से बुद्ध हैं, ससार समुद्र को तैर चुके होने से पारगत है, तथा हमेशा सिद्ध रहेगे, इस से परपरागत है । ३८१ सिद्धात्मा समस्त दुखो को नष्ट किये होते हैं । जन्म, जरा और मृत्यु के बन्धन से मुक्त होते हैं । अन्याबाध सुख का अनुभव करते हैं और शाश्वत सिद्ध होते हैं । ३८२ ऐसा सुख न तो मनुष्य के होता है और न सभी देवताओ के, जैसा कि अव्यावाघ गुण को प्राप्त सिद्धात्माओ के होता है ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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