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________________ धर्म और दर्शन (मोक्ष) १०३ मुक्त होनेवाली आत्माओ का वर्तमान अन्तिम देह का मरण ही एक मरण होता है, और नही। उपार्जित कर्मों का फल भोगे विना मुक्ति नहीं है। मोक्ष मे आत्मा अनन्त सुखमय रहता है, उस सुख की न कोई उपमा है और न कोई गणना ही। ३६८ जीव ज्ञान से पदार्थों को जानता है, दर्शन से श्रद्धा करता है, चारित्र से आश्रव का निरोध करता है, और तप से कर्मों को झाड कर शुद्धनिर्मल होता है। ३६६ जब साधक उत्कृष्ट सयमरूपी धर्म का स्पर्श करता है, तब आत्मा पर लगी हुई मिथ्यात्व-जनित कर्म-रज को झाड कर दूर कर देता है। ३७० जव आत्मा मन, वचन और काय के योगो का निरोध कर शैलेशी अवस्था को प्राप्त करती है, तब वह कर्मों का क्षय कर सर्वथा मलरहित होकर सिद्धि (मोक्ष) को प्राप्त होती है । जव आत्मा समस्त कर्मों को क्षय कर सर्वथा मलरहित सिद्धि (मोक्ष) को पा लेती है, तव वह लोक के मस्तक पर स्थित होकर सदा के लिए सिद्ध हो जाती है। ३७२ यदि किसी साधक को मोक्ष की वास्तविक साधना की प्रतिज्ञा है तो निश्चयदृष्टि मे उस के साधन ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही है । ३७३ वन्धन से मुक्त होना तुम्हारे ही हाथ में है।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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