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________________ धर्म और दर्शन ( आत्मा ) ३३६ वस्तुत वन्धन और मोक्ष अपने भीतर ही है । ६५ ३४० दुश्मनो के साथ युद्ध करने से आत्मा के साथ ही युद्ध कर, बाहरी तुझे क्या लाभ ? आत्मा को आत्मा के द्वारा ही जीत कर मनुष्य सच्चा सुख पा सकता है | ३४१ आत्मा ही सुख-दुख करने वाली तथा उनका नाश करनेवाली है । सत् प्रवृत्ति मे लगी हुई आत्मा ही मित्ररूप है जब कि दुष्प्रवृत्ति मे लगी हुई आत्मा ही शत्रु रूप हैं । ३४२ जो आत्मा है वह विज्ञाता है जो विज्ञाता है वह आत्मा है । जिससे जाना जाय वह आत्मा है, जानने की शक्ति से ही आत्मा की प्रतीति है । ३४३ जो पुरुष दुर्जय सग्राम मे दम लाख योद्धाओ पर विजय प्राप्त करे, उसकी अपेक्षा वह एक अपने आप को जीतता है यह उसकी परम विजय है । ३४४ दुराचार मे प्रवृत्त आत्मा जितना हमारा अनिष्ट करती है उतना अनिष्ट तो एक गला काटनेवाला दुश्मन भी नही करता । ३४५ हे आत्मन् I तू स्वय ही अपना निग्रह कर । ऐसा करने से दुखोसे मुक्त हो जायगा । ३४६ आत्मा और है शरीर और (अन्य ) है ।
SR No.010166
Book TitleBhagavana Mahavira ke Hajar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni
PublisherAmar Jain Sahitya Sansthan
Publication Year1973
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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