SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -और म० बुद्ध ] [२४५ "Even the bashful lose shame by drinking it and will have done with the trouble and res. traint of diess; unclothed like Nirgranthas, they will walk boldly on the highway crowded with people. » - अर्थात्-इसके पीनेसे लज्जावान भी लज्जाको खो बैठते हैं और वस्त्रोंके कष्टो और बन्धनोंसे विलग होकर निर्ग्रन्थोंकी तरह नग्न होकर वे जनसमूहकर पूर्ण राजमार्गोंपर चलते हैं। यहां जैनमुनिकी नग्न दशापर कटाक्ष किया गया है। इससे भी जैन मुनियोंका नग्न होना स्पष्ट है। 'बावेरु जातक' में म० बुद्धके अतिरिक्त अन्य छह मतप्रवर्तकोकी उपमा, जिनमें भगवान महावीरको भी गिना गया है, उस कउवेसे दी गई है जो अपनी प्रतिष्ठासुन्दर मोरके आनेपर खो बैठा हो। यहां मोर म० बुद्ध बताये गये हैं और टीकाकारने कउवेकी समानता भगवान् महावीरसे की है। (तदा काको निगन्ठो नातपुत्तो)' इस विद्वेषभावका भी कहीं ठिकाना है। सचमुच वौद्धोंको भगवान् महावीरके धर्मप्रचारसे विशेष हानि सहनी पड़ी थी, इसीलिए वे उनका उल्लेख इस तरह कर रहे हैं । इस सांप्रदायिकताके विषवीजने ही अन्तमें भारतको पीडाकी भट्टीमें ला रक्खा है, यह स्पष्ट है। इसी तरहका एक अन्य उल्लेख एक अन्य जातकमें है। वहां लिखा है कि अचेलक (नग्न) नातपुत्तने धोखेसे बुद्धको पंकी हुई मछली खानेको दी और बुद्धने उसे खा ली; तब नातपुत्तने उनपर पापोपार्जन करनेका लाञ्छन लगाया और कहा कि “शठ चाहे १. भाजीवरस भाग 1 पृ० १६ ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy