SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - -और म० युद्ध ] [१०५ विरुद्ध पड़ते हैं, परन्तु उक्त प्रकार म० बुद्धकी जीवनघटनाओंके अभावका कारण भगवान महावीरका धवल धर्मप्रभाव मानते हुये, हमे जैनाचार्यका कथन यथार्थताको लिये हुये मिलता है परन्तु ऐतिहासिकताके नाते हम बौद्ध शास्त्रकारके कथनको भी एकदम नहीं भुला सक्त है। वात वास्तवमें यो मालूम देती है कि जिस समय भगवान महावीरका धर्मप्रचार होता रहा, उस समय अवश्य ही उनके प्रभावके समक्ष शेष धर्म अपनी महत्ताको खो बैठे, जैसे कि जैनाचार्य कहते है और जो म० बुद्धके सम्बन्धमे ऊपर एवं निनकी भाति प्रमाणित होता है, परन्तु जब भगवान महावीरका निर्वाण होनेको था तब हमको मालम है कि राजा कुणिक अनातशत्रु जैनधर्मके विमुख होगया था। इसके जैनधर्म विमुख होनेका कारण सम्राट् श्रेणिककी अकाल मृत्यु और वजियन राज्यपर आक्रमण करना कहे जा सक्ते हैं; क्योंकि क्षायिक सम्यक्त्वी सम्राट् श्रेणिकके मरणका कारण बनकर एवं भगवान महावीरके पितृ और मातृकुलोपर आक्रमण करके सम्राट् कुणिक अजातशत्रु अवश्य ही जैनियोद्वारा घृणाकी दृष्टि से देखा जाने लगा होगा। ऐसे अवसरपर बौद्ध भिक्षु देवदत्त, जिसका सम्बन्ध इनसे पहिलेका ही था, यदि अजातशत्रुको बौद्धानुयायी बनाले तो कोई अद्भुत बात नहीं है, अतएव सम्राट् कुणिक अजातशत्रुके बौद्ध हो जानेसे मगध और अंगका १ उत्तरपुगणमें लिखा है कि जब भगवान महावीर मोक्ष चले गए और सुधर्मास्वामी प्रचार करते राजगृह आए तब फिर कुणिक अजात. शत्रुने जैनधर्म धारण किया था। (पृष्ट ७०२) और अग्रेजी जनगजट भाग २१ पृष्ट २५४. २ के. जे सोन्डर्स " गौतमबुद्ध " पृष्ठ ७१.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy