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________________ ( ६४ ) लगी थीं।' उन्होंने नायखण्ड-उद्यान में एक सुन्दर मन्दिर वनवाया था। यह भी सम्भव है कि वहाँ पर एक चैत्यालय पहले से विद्यमान रहा हो। उस चैत्यालय के आस-पास एक मनोरम उद्यान भी था। राजा सिद्वार्थ और अन्य ज्ञात क्षत्रिय वहाँ आकर धर्म सेवन किया करते थे। सारांशतः महावीर एक वद्धिमान, धर्मन और प्रभावशाली राजा के पुत्र थे। जब वह रानी त्रिशला के गर्भ मे थे, तब ही से उनका प्रभाव प्रगट होने लगा था। जैन शास्त्रों में लिखा है कि उस समय उनकी सेवा मे इन्द्र की आज्ञानुसार ५६ दिक्क पारियाँ तल्लीन थी। वे राजमाता के मन को प्रफुल्लित करने के लिए रसभरी काव्य और ज्ञान गोष्ठियाँ किया करती थीं। माता त्रिशला उनके प्रश्नों का जो उत्तर देती उसको सुनकर वह चकित हो जाती थीं। उन उत्तरों से त्रिशलादेवी की विद्वत्ता तो टपकती ही थी, परन्तु साथ ही गर्भस्थ वालक की दिव्यप्रतिभा मे शङ्का करना व्यर्थ है। प्रत्यक्ष अनेक घटनायें ऐसी देखने को मिलती हैं जिनसे अदृष्ट देवयोनि का अस्तित्व मानने के लिए बाध्य होना पढता है। इस अवस्था में इन्द्र की प्रज्ञा से कुण्डलपुर में राजा सिदार्थ के महल में नियत समय पर रत्नवृष्टि होना स्वाभाविक है । महापुरपों का जन्म त्राणदाता होता ही है । इन्द्र ने कृतज्ञता ज्ञापन के लिए ऐसा करके ठीक ही किया । (विशेष के लिए हमारी पुस्तक 'श्री ऋषभदेव की उत्पत्ति असंभव नहीं है ! देखो)२ संजे इ०, भा० २ वट १ प० ४२-४६ १. श्वेताम्बरीय शास्त्रों जैसे विपाकसूत्र आदि में इस उद्यान का नाम 'दुइपलास चैत्य उद्यान' अथवा 'नायषएडवन उद्यान' लिखा है और इसमें एक चैत्व (मंदिर) होने का भी जिक्र है।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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