SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान का शुभागमन "दिशः प्रसेदुर्मरुतो वः सुखाः ___प्रदक्षिणार्हिविरग्निराददे । वव सर्व शुभशंसि तत्क्षणं भवो हि लोकाभ्युदयाय ताशास् ॥" 'दिशाये निर्मल हो गई । सुन्दर वायु बहने लगा। अग्नि दक्षिणायण (दक्षिणाग्नि) होकर हवि (हवन द्रव्य) ग्रहण करने लगी। उस समय सब बातें शुभ की सूचना देने लगीं। बात यह है कि महापुरुषों का जन्म लोक के कल्याण और अभ्यदय के लिये हुआ करता है।' उनको जीती-जागती मूर्ति जंगम प्रतिमा तत्कालीन लोक का उपकार करतो है, परन्तु उपरान्त काल के मनुष्यों के लिये भी उनका अनुपम चरित्र उतना ही कल्याणकारी होता है। महापुरुष लोक-नेत्र होते है । सूर्योदय से जैसे रजनी का तम दूर होता है, वैसे ही महापरुष के ज्ञान प्रकाश से अजानांधकार का परदा लोगों के नेत्रों के आगे से हट जाता है ! जीवन-साफल्य और अभ्युदय के लिये इससे सरल और सुगम उपाय हो ही क्या सकता है ? उपदेश नहीं, आदर्श उदाहरण ही कार्यकारी है । कथनी नहीं करनी हो आत्मोद्धारक है। इसलिये ही कवि ठीक कहता है: "हसे सहत पुरुषों के जीवन, ये ही वात सिखाते हैं। जो करते है सतत परिश्रम, वे पवित्र बन जाते हैं।" महापुरुषों का माहात्म्य ही यह है । उस पर भ. महावीर एक तीर्थकर थे। जिस प्रकार चक्रवर्ती सम्राट् शासनचक्र का आदर्श अपने व्यक्तित्व से मूर्तिमान बनाते हैं, नारायण और बलभद्र राजत्व अथवा राजनीति का आदर्श थापते हैं और
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy