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________________ का सच्चा हित साधते थे। उनके संघ को राजत्व प्रात होता था। इन गणराज्यो में निम्नलिखित विशेष उल्लेखनीय थे: (१) लिच्छवि अथवा वज्जिय गणराज्य-इस राज संघ मे आठ क्षत्रिय कुलों के प्रतिनिधि सम्मिलित थे, जो 'राजा' कहलाते थे। वे आठ क्षत्रियकुल (१) वृजि, (२) लिच्छवि, (३) ज्ञात्रिक, (४) विदेही, (५) उग्र, (६) भोग, (७) इक्ष्वाकु, और (6) कौरव नामक थे। इनमे लिच्छवि क्षत्रिय प्रमुख थे। उनकी राजधानी वैशाली उस समय का एक प्रधान नगर था । उसके देवमंदिर और राजमहल अनूठी कारीगरी के बने हुए थे। लिच्छवि क्षत्रिय परिश्रमो, धीर-वीर, समृद्धिशाली और शिक्षा सम्पन्न होने के साथ ही धार्मिक रुचि और भाव को रखने वाले थे। वे बड़े स्वातत्र्यप्रिय और स्वाभिमानी थे। किसी की आधीनता स्वीकार करना उनके लिए सुगस नहीं था। उस समय के क्षत्रियों में उनकी विशेष प्रतिष्ठा और मान्यता थी। प्राचीन काल से वे जैन धर्म के उपासक थे। उनमे राजा चेटक प्रमुख थे। संभवत वे ही उस समय वज्जिय राजसंघ के प्रधान राजा थे। जैनशास्त्रों में उन्हें इक्ष्वाकुवंशी वशिष्ट गोत्री क्षत्रिय लिखा है । 'उत्तर पुराण' (पृ० ६४६) मे इन्हें सोमवंशी लिखा है, जो इक्ष्वाक्वंश का एक भेद है। चेटक की रानी का नाम भद्रा अथवा सुभद्रा था। वह एक पतिव्रता रमणी थी। दोनों ही पति-पत्नी जिनेन्द्र भगवान के अनन्य भक्त थे। उनकी सन्तान भी उन्हीं के अनुरूप अर्हन्तभक्ति--परायण थी। चेटक म्वय पराक्रमी, वीर योद्धा थे। उनके पुत्र भी वैसे ही थे। सिंह
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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