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________________ ( ४४ ) प्राचीन दिगम्बर मुनि थे -उनके गुरु संजय भी दिगम्बर मुनि प्रतीत होते हैं । जैन शास्त्रों में संजय नामक सुनि को उल्लेख मिलता है, जिन्हें जिनमार्ग में शङ्कायें थीं । १ संजय की शिक्षा लैनों के स्याद्वाद सिद्धान्त का विकृत-सा रूप दिखती है। संभव है, वह स्वयं जैन मुनि रहा हो और स्याद्वाद सिद्धान्त का प्रतिपादन अपनी शैली से करता रहा हो ! उपरान्त भ० महावीर के दर्शन से उसकी शङ्का हल हो गई तब वह उनकी शरण में श्राया हो । अन्यत्र कहीं उसका पता नहीं चलता । चौथे मत प्रवर्तक अजित केशकम्बलि वैदिक क्रियाकाण्ड के कट्टर विरोधी थे । वह पुनर्जन्म सिद्धान्त को नहीं मानते थे । जीव और शरीर को एक बतलाते थे । ( 'वं जीवोतं शरीरम् )२ प्राणि हिंसा करना उनके निकट कोई दुष्कर्स न था ।३ चार्वाकमत की सृष्टि अजित के मतानुकूल हुई हो तो आश्चर्य ही क्या ? संभव है, अजित ने भ० पार्श्वनाथ के व्यवहार धर्म को ठीक नहीं समझा और वह पथभ्रष्ट हुआ ! पकडकात्यायन पांचवें मत प्रवर्तक थे। उनका मत था कि 'असत् का सद्भाव संभव नहीं हैं और सत् का नाश अशक्य है ।' (सत्तो नच्चि विनसो, असतो नचि संभवो) साव शाश्वत तत्व हैं । (१) पृथ्वी, (२) जल, (३) अग्नि, (४) वायु, १. भमपु०, पृ० २२-२३ देखो । २. हिस्टॉक ग्लोनिंग्स, पृ० ३१ इ. चैन सूत्र (SBE ) मा० २ भूमिका पू० २३ १. पूर्व प्रभाग, पृष्ठ ર
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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