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________________ मस्करि, दोनो ही श्री पार्श्वनाथ जी की शिष्य परम्परा के मुनि थे, जो भृष्ट हो गये थे। श्वेताम्बरीय शास्त्रों मे सवलि पुत्र गोशाल को स्वय भ० सहावीर का शिष्य उनकी छद्मस्थ अवस्था का बतलाया है।२ उस साधना काल मे तीर्थङ्कर भगवान् मौन से रहे थे ।३ वह गोशाल को शिष्यत्व कैसे देते, जव कि वे स्वयं गुरुपद को प्राप्त नहीं हुये थे। किन्तु इसमे शक नहीं कि पूर्ण काश्यप और मस्करि गोशाल प्राचीन जैन धर्म भ० महावीर से पहले के जैन धर्म से सम्बन्धित अवश्य थे। ४ इन दोनों मतप्रवर्तको का आपस मे गहन सम्बन्ध था और गोशाल ने जैनियों के 'पूर्वगत' ग्रन्थों के आधार से अपने मत के सिद्धान्तों को नियत किया था। जब म० महावीर सर्वत्र तीर्थड्वर हो गये और उनके गणधर नवदीक्षित ब्राह्मण इन्दभूति गौतम हुए, तब गोशाल यह सहन न कर ५ "मसयरि-पूरण रिसिणो उप्पणो पासणाह तित्यम्मि । सिरि वीर समवसरणे अगहियमणिण नियत्तेण ॥ ७६ ॥ xx अण्णाणाम्रो मोक्खं एवं लोयाण पयढमाणो हु । दवो अगस्थि कोई सुराण झाएह इच्छाए ॥ १७ ॥" भावसग्रह २. भगवती सूत्र १५. ३. स्वयं श्वेताम्बरीय मान्यता है कि छद्मस्य दशा में तीर्थकर मौन से रहते है-टपदेश नहीं देते । देखो याचाराङ्ग सूत्र ( SBE ) पृष्ठ ८०-८७1 ४. हमारा "सक्षिप्त जैन इतिहास" भाग २ खंट १५० ६२-७२ देखो।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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