SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३७ ) सक्दा सुकाल सब ओर दीखता था। जैन कथाओं मे उस समय की समृद्वि और अर्थ सम्पन्नता का चित्रण हुआ मिलता है। मनुष्यों को भोजन-वस्त्र की कमी नाम को नहीं थी । दास और दासी के अतिरिक्त कोई मजदूरी नहीं करता था-मजदूरी भी पैसो के लिये नहीं की जाती थी-सुखी और स्वाधीन जीवन बिताने के लिये मजदूरी की जाती थी। श्रमी मालिक के घर का एक अङ्ग बन जाता था । चंदना को कौशाम्बी के सेट अपने घर ले गये-घर में पहले वह ऐसे रही मानो उस घर में ही जन्मी हो या उससे सम्बन्धित हो । परन्तु दास-दासियों पर कभी कभी घोर अत्याचार भी हो जाते थे। उनका मानवी जीवन दूसरों की दया पर निर्भर था। कृषि और वाणिज्य ही लोगों का मुख्य व्यवसाय था, पर शिल्पका अभाव नहीं था। गांव-गांव में विविध प्रकार के कलाकार रहते थे। प्रत्येक ग्राम अपनो आवश्यकताओं की पूर्ति करने में स्वयं समर्थ था । खेती से अन्न, कर्फे से वस्त्र, पशुधन से दूध-घी और अवशेष वस्तुयें उन्हें अन्य शिल्पियों से मिलती थीं। लोग भरे पूरे चैन से रहते थे। व्यापारी लोग दूर-दूर देशों से व्यापार करते थे। देश की आवश्यकतानुसार चीजें लाते और ले जाते थे । मिश्र, यूनान चीन, फारस, लंका आदि देशों से व्यापार किया जाता था। उस समय के सिक्के भी मिले हैं। व्यापारिक आदान-प्रदान सिक्कों से नकद होता था। उस समय लोग गांवों मे ही अधिक रहते थे। नगरों की संख्या गिनी चुनी थी। नगर समृद्धिशाली और समुन्नत नागरिक जीवन की साक्षी देते थे। उनमें नाग
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy