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________________ ( ३३१ ) और हुएनत्सांग ने भी जैन मुनियों को नग्न लिखा था। तामिल के प्राचीन साहित्य प्रन्थों जैसे 'मणिमेखले' और 'सिल प्पदिकारम्' मे उल्लेख है कि निम्रन्थ संघ में जाकर मुमुक्षु दिगम्बर साधु हो जाते थे ।२ ___ भारतीय पुरातत्व से भी श्रामण्यका लक्षण दिगम्बरत्व ही प्रमाणित होता है । मोइन जोदड़ो और हड़प्पा से नग्न मूर्तियाँ मिलीं हैं, जो दिगम्बर जैन मूर्तियों के अनुरूप हैं ।३ हाथीगुफा शिलालेख, कंकालीटीला मथुरा, अहिच्छत्र, पहाड़पुर, उदयगिरि ( भेलसा) आदि के लेखों से स्पष्ट है कि जैन साधुजन नग्न रहते थे।४ सारांशतः जैन संघमें श्रमण गण सदासे ही दिगम्बर वेप मे रहते आये हैं । अतएव इस बात को लेकर ही संघ में विषमता उपस्थित किये रखना उचित नहीं। सम्यक्त्व की दृढ़ता सच्चे देव, सच्चे गुरु और सच्चे शास्त्रों को मानने एवं सात तत्वों में श्रद्धा रखना ही है। उस पर इस पंचमकाल में मुक्ति का द्वार सर्वथा बंद ही है। कुल्लक और ऐलक निम्रन्थ वस्त्रधारी गृहत्यागी होते ही है; जो यद्यपि उदासीन श्रावक कहे गये हैं परन्तु जैनेतर साधुओं से कहीं श्रेष्ठ चयों का पालन करते हैं। इस मतभेद के कारण दिगम्बर और श्वेताम्बर-आपस में विरोधभाव रक्खे, यह भ० महावीर की शिक्षा के अनुरूप नहीं है। जैन संघमे विरोधभाव पनप जाने पर भी, वह विद्वेष का फारण नहीं हुआ था । जैनाचार्य मिलकर ही जैनधर्म के प्रभाव को 'प्रचण्ण बनाये हुये थे। मगधमे श्रेसिक विम्बसार के वंशजों 1. The Lihi (Nirgranthas) distinguish themselves by leaving their bodies naked-St.Julien Vienna, p24 • Surice in South Indian Jainism, pt. pp 47-48, 1. सिद्धांत भास्कर, भा. १.५० ८७-८८
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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