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________________ ( ३०६ ) जिन्होंने वर्णित किया है (आवभूव ) उसका यथार्थ रूपमे (सर्वतः ) और ज्ञानके प्रत्येक योग्य सामञ्जस्य के साथ (वाजस्य जो (ज्ञान) एक व्यक्ति के आत्मा का है (विश्वभुवनानि') इस लोक के प्रत्येक जीवधारी को और (उनके हितैषी उपदेश से) (पुष्टि) आत्मज्ञान की शक्ति (नु ) तत्क्षण ( वर्धयमानो ) बढ़ती है (प्रजा ) जीवों में ' ___'यजुर्वेद' का यह वर्णन भ० अरिष्टनेमि की जीवन चर्या से ठीक बैठता है और उनके महान् व्यक्तित्व का पोषक है । जब श्रीकृष्ण जी की महानता मे हमें विश्वास है तो कोई कारण नहीं कि हम श्री अरिष्टनेमि के व्यक्तित्व में शङ्का करें। आधुनिक विद्वान् उनको एक ऐतिहासिक पुरुष मानते है । जनसाधारण मे उनकी प्रसिद्धि जैन गुरू के रूपमें है-लोग कहते हैं कि जैनी बाबा नेमिनाथ को पूजते हैं-उन्होंने जैनधर्म चलाया; परन्तु यह लिखा जा चुका है कि इस युग में जैनधर्म की स्थापना तीर्थकर ऋषभदेव ने की थी। भ० महावीर से भ० अरिष्टनेमि का कोई सीधा सम्बन्ध प्रगट नहीं होता । यह अवश्य है कि अरिष्टनेमिजी के समय की जनता ज्यादा बहकी हुई हठीली नहीं थी-वह भोली और श्रद्धाल थी । जो पुरातन प्रथा उसे प्रचलित दिगम्बर बम विशेर्पाक वीर सं० २४७३ १. "पाश्वनाथ जी से पहले बाईसवें तीर्थकर श्री नेमिनाथ स्वामी भ० श्रीकृष्ण के सम्पर्क माता थे।""म• श्रीकृष्ण को यदि हम ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं तो हमें बलात् उनके साथ होने वाले २२ वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ को भी ऐतिहासिक पुरुष मानना पड़ेगा।" -श्री नगेन्द्रनाथ वसु, प्राच्यविद्या महार्णव इत्यादि डॉ. फहरर ने 'इपीय फिया इंटिका' ( भा० १ १० ३५९ ) में भौर डॉ. टॉमस ने 'मिरेविन पत्रिय क्न्स व इण्डिया' की भूमिका में यही प्रगर किया है।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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