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________________ ( २६५) उपदेश से उदाहरण का मूल्य अधिक होता है । जिस धर्म सिद्धांत को महावीर ने प्रतिपादा, वह उनके जीवन में जागृतरूप पा चुका था। यह विशेषताये ही भ० महावीर की महानता को व्यक्त करती है। उनकी इस महानता का प्रभाव श्री जिनसेनाचार्य जी के शब्दों मे य है कि "जिन महानुभावों ने भ० महावीर का वचन सुना अथवा उन्हें प्रत्यक्ष देखा उसकी प्रकृति मिथ्या वर्मो से सर्वथा हट गई ! उन्हे भगवान् का रूप देखने से और वचन सुनने से परमानंद हुआ!" भ. महावीर आप्त-सच उपासनीय देव थे-वह सर्वोत्कृष्ट गुरु थे। उनकी उपासना और पूजा उनके पगचिन्हों का अनुकरण करना है। उनका उपकार इसी में है कि उन्होंने हमे वस्तुतत्व का बोध कराया--सोते से जगाया और विवेक नेत्र दिया। उनका दिव्योपदेश लोक के लिये त्राण था। वह था भी अनुपम ! उन्हे इच्छा नहीं थी कि वह जगद्गुरु बने ! इच्छा को तो उन्होंने जीता था। मुमुक्षुओं का पुण्य प्रताप था वह कि उन्हे पूर्ण ज्ञानी परमात्मा के मुख से धर्मोपदेश सुनने को मिला ! वह निरक्षरी भाषा मे होता था। महावीर लोककी निधि थे। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी तक उनसे ज्ञान पाने के अधिकारी थे। फिर वह भला अपने को भाषा के बन्धन मे क्यों बांधते ? उन का विश्वव्यापी-रूप किस तरह सीमित हो जाता ? इसलिये वह ऐसे बोले जैसे प्रकृति की ध्वनि हो, जिसे हर जीव समझ ले। इसे कहिये 'आत्म-भाषा' (अपनी बोली), जिसे प्रत्येक जीव के लिये समझना सुगम है । मागधदेव प्रत्येक जीव को उसे समझने देने में सहायक होता था। आज भी तो विज्ञान वेत्ता ऐसा उद्योग कर रहे हैं कि रेडियो स्टेशन से प्रचारित प्रोग्राम को प्रत्येक राष्ट्र और वर्ण का श्रोता उसे अपनी बोली मे समझ ले। 'ध्वनि विज्ञान' के सहारे ऐसा होना सभव ही है। किन्तु भ०
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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