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________________ (३०) भगवान का निर्वाण-काल "णियाणे वीर जिणे छव्वाससदेसु पंचवरसेसु । पणमासेसु गदेसुसंजादो सगणिो अहबा ॥" -त्रिलोकप्रज्ञप्ति, भगवान् महावीर का निर्वाण कब हुआ ? इस प्रश्न का ठीक उत्तर देना कठिन है। भगवान को हुये आज लगभग ढाई हजार वर्ष हुये है । इतनी पुरानी बात को कोई कैसे बतादे ? जैन समाज मे इस शती के प्रारम्भ से वीर निर्वाण की मान्यता सन् ५२७ ई० पू० से मानकर प्रचलित है। इसका आधार जैकोबी सहश पाश्चात्य विद्वानों का अभिमत हो सकता है। यह गणना निर्धान्त है, यह तो नहीं कहा जा सकता, परन्तु आज यही लोकमान्य हो रही है । आधुनिक जगत भ. महावीर के समय से बहुत दूर आगया है, परन्तु उसके जो अधिक निकट थे वह भी वीर-निर्वाण-काल के विषय मे एक निश्चित मत नहीं रखते थे। 'त्रिलोक प्रज्ञप्ति' जैसे प्राचीन ग्रन्थ में भी निर्वाणकाल विषयक विभिन्न मतों का उल्लेख है। उसमे लिखा है कि । "वीर भगवान् के मोक्ष के बाद जब ४६१ वर्ष वीत गये, तब यहाँ पर शक नामका राजा उत्पन्न हुअा अथवा भगवान् के मुक्त होने के बाद ६७८५ वर्प ५ महीने बीतने पर शक राजा हया। १. "वीर जिणं सिदिगदे चटसदागिसहि वास परिमायो। फालंमि अदिक्क ते उप्परणो एस्थ सगरायो ॥८६॥ श्रहवा वीरे सिद्ध सहस्स णवकमि मगसयामहिये । पणसीटिमि यतीदे पणमासे सगणिनो जादा 10 ॥ पाठान्तरं ॥
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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