SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२६) दीन, मानन्द अनुभव अनान्द्रिय --ममनिये कहने मगंगा विपन नहीं है। ममाथिलीन गोगी ही मरा रमा. चाटन करते। में तो मंमार में सर ही प्राणियों का भौतिक जीवन एक दिन मनाम होता है. परन्तु यह ममाप्ति एक अन्य मंसारी जीवन का प्रारम्भ होती है-नारी जीव के लिये चतुति परिधना करना अनिवार्य है। रिन्तु भ. महावीर के मसारी जीवन का अन्त विशिष्ट या-वह 'पिर मसार में न जाने के लिये हुया था।' उसमें जन्म-मरण के पाश कट गय, जो भवभ्रमण के कारण हैं। यही कारण है कि हम और श्रार कहते है कि भगवान ने मोनलाम' किया। भ. महावीर गणधर यादि चतुर्विधि संघ के साय विहार करते हुये एक अच्छे ने दिन विहार प्रान्त के अन्तर्गत पावा नामक स्थान पर पहुँचे। वह मनोरम स्थान प्रकृति सुलभ छटा से युक्त था। वहाँ वन्छ सलिल मरोवर नयनाभिराम था। उसके मध्य सर्व बनराशि सम्पन्न सुगधित समीरण से संवाहित एक भमिस्थल था। वह राज्य उपवन था-'मनोहर' उसका नार्थक नाम था । भगवान् उनके मध्य एक वृक्ष के नीचे विरानमान हुये। पावा के राजा हस्तिपाल ने भगवान् के शुभागमन की शुभवातो सुनी-वह हर्षातिरेक में थिरकने लगे। इस सुअवसर की वह वाट जोह रहे थे। उन्होंने नगर में आनन्दभेरी दिलाईममत्त पुरवासी आनन्द विभोर हो वीर वन्दना के लिये उत्सुक हो राज्योद्यान को गये । पावा के राजमार्ग त्वच्छ और शोभा से खिल उठे थे-वहाँ की गलियों में गलाबजल छिड़का गया था। राज मंदिरों, भव्य भवनों और वक्षों तक पर रंगविरंगी - पताकायें एवं दीपमालिकायें लटकाई गई थीं। बहुमूल्य वस्त्रा
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy