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________________ ( २४३ ) व्रत लिए। एकदा वह बसन्त ऋतु के समय जल क्रीड़ा कर रहे थे। उन्होंने देखा, बन्दरों के दो झंड आपस मे लड़कर लहूलुहान हो रहे हैं। उन्होंने व्यक्ति के स्वार्थ की नृशंसता अनुभव की-संसार की कुटिल रीति-नीति से वह घबड़ाये । उसी समय उन्होंने सुना कि भगवान महावीर राजपुर के बाहर सुरमलय उद्यान में अवतरे हैं। सम्राट जीवधर उनकी शरण में पहुंचे और दिगम्बर मुनि हो गये । वह कर्मवीर थे- रणांगण में अनेक सुभट शत्रुओं के छक्के उन्होंने छुड़ाये थे, वही अब कमवैरियों से मोर्चा लेकर उन्हे निष्प्रभ कर रहे है । वह महान् श्रुतज्ञानी हैं और भ० महावीर के साथ ही साथ इसी विपुलाचल पवत से मोक्षधाम को प्राप्त करने वाले है।" श्रेणिक उन मुनिराज का ऐसा माहात्म्य सुनकर प्रसन्न हुए और लौटते मे उन्होंने उनकी अभिवन्दना की - सत्संगति का लाभ लेने के लिये वह उनके निकट विरम रहे। श्र तज्ञानी जीवधर मुनिराज से उन्होंने वार-प्रवचन का महत्व और जैन गणित-शास्त्र की विशेषता जानी। जैन वाङमय ग्यारह अङ्ग-ग्रन्थों और चौदह पूर्वो मे विभक्त है। उसके चार अनुयोगः (१) द्रव्यानुयोग, (२) चरणानयाग, (३) करणानुयोग और (४) प्रथमानुयोग लोक के सत्र ही विषयों का प्रतिपादन करते हैं। द्रव्यानुयोग में दर्शनशास्त्र और तत्व ज्ञान की विवेचना होती है। चरणानुयोग मुनियों और ग्रहस्थों के धर्म-नियमों का प्रतिपादन करते है, जिनमे शौच विज्ञान, पाकशास्त्र और वनस्पति विज्ञान आदि विषयों का सूक्ष्म वर्णन गर्भित होता है। करणानुयोग के ग्रंथ लोक विज्ञान तथा गणित शास्त्र का विवेचन करते हैं। और प्रथमानुयोग पुराण, कथा वार्ता और इतिहास से ओतप्रोत होते हैं। उनमे कर्म सिद्वान्त का क्रियात्मक रूप झलकता है --विवेकी उनका 'अध्ययन करके कर्म वैचित्र्य का अनुभव करते हैं। लोक के प्रत्येक
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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