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________________ (२४) शब्दालपुत्र का शंका निवारण ! "देवादेवार्थ सिद्धि श्चेवं पौरुषतः कथम् । दैवतश्चेदनिर्मोक्षः पौरुपं निष्फलं भवेत् ॥८॥" -श्री समन्तभद्राचार्य तीर्थकर भ० महावीर विहार करते हुये पलाशपुर नामक नगर में भी शोभित हुये थे। पलाशपुर में शब्दालपुत्र नामक एक धनवान् कुम्हार रहता था । वह कुम्हार आजीविक सम्प्रदाय के संस्थापक मङ्कलिपुत्र गोशाल का अनुयायी था। पूरण और मङ्खलि गोशाल नामक दो मुनिगण तेईसवें तीर्थंकर भ० पार्श्वनाथ की परम्परा में प्रख्यात थे। दोनों ही दिगम्बर भेप में रहते थे। मङ्खलि ने ग्यारह अग और दशपों का . अध्ययन किया था। वह अपने को विशेष ज्ञानी समझता थावह था द्रव्यलिंगी मुनि । जब भ० महावीर केवलज्ञानी हुये और उनके मुख्य गणधर इन्द्रभूति गौतम हुये वो उसे बडी निराशा हुई-वह उद्दण्ड हुआ और श्रावस्ती में जाकर अपने को तीर्थङ्कर घोपित करने लगा था। लोगों को योगिक चमत्कार दिखाकर उसने उन्हें अपना भक्त बनाया। शब्दाल पुत्र उनमें मुख्य था । वह सफल शिल्पी था। उसके मिट्टी के सुन्दर वर्तन और अनूठे खिलौने दूर २ तक विकने जाते थे। उसकी कारीगरी प्रसिद्ध थी और उसने खूब धन कमाया था । लोग कहते थे कि वह तीन करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं का स्वामी था। पलाशपुर के वाहर उसकी मिट्टी के बर्तन बेचने की पाच मौ दुकानें चलती थीं। एक दिन किसी पर्यटक के मुंह से उसने सुना कि कल प्रातःकाल पलाशपुर में त्रैलोक्य पूज्य सर्वन-सर्वदर्शी प्रभु पधारेंगे। शब्दालपुत्र समझा कि उसके धर्मगुरु गोशाल श्रावेंगे।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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