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________________ ( २२३ ) उसका भाव था कि “मनुष्य अपने अच्छे-बुरे परिणामों के अनुसार ही शुभाशुभ बंध करता है और जब उसके भाव न शुभ होते हैं और न अशुभ, बल्कि शुद्ध आत्मस्वभावी हो जाते हैं तव वह बंध का नाश करता है । छै लेश्याये मनुष्य के अतंरंग भावों की परिचायक हैं। वे (१) कृष्ण, (२) नील, (३) कापोत, (४) पीत, (५) पद्म, (६) और शुक्त हैं। उनके तारतम्य-तीव्र और मन्द भावों के अनुसार आत्मा कम से लिपती है। इनका अर्थ समझने के लिए यह उदाहरण कार्यकारी है । एक फलाफला आमका वृक्ष है । छै मनुष्य उस पर से आम लेने के लिए जाते हैं। एक भीम-कृष्णकाय व्यक्ति उस आमसे लदे हुये वृक्षको देखकर लोभ मे अंधा हो जाता है - वह नहीं चाहता कि उस वृक्ष से और कोई लाभ उठाये; इसलिए वह उसे जड़ से ही काटना चाहता है। उसके यह क्रूर भाव कृष्ण लेश्या के है और अत्यन्त निकृष्ट है। दूसरा आदमी उससे कहता है, भाई । जड़ से क्यों काटते हो ? आओ, एक-दो शाखायें काट लो --उनसे काफी फल, थोड़ी-बहुत लकड़ी और चारा भी मिलेगा। इस व्यक्ति के पहले वाले से कम लोभ कषाय है; परंतु हैं इसके भी भाव स्वार्थपूर्ण-यह भी दूसरे का संसर्ग और सम्पर्क नहीं चाहता। यह भाव नील लेश्या के हैं। तीसरे आदमी का लोभ इस दूसरे से भी कम है। वह कहता है कि शाखाओं को क्यों काटा जाय ? टहनियों से ही काम चल जायगा, यह भी स्वार्थ में लिप्त है और हिंसकभाव को लिए हुये है। इसके परिणाम कापोत लेश्या के हैं और बरे हैं। यह तीनों लेश्यायें बरी है। धर्म श्रद्धालु स्वप्न में भी इन दुर्भावों को अपने मन मे नहीं आने देते ; अन्त की तीनों लेश्यायें शुभ है-उनमें मानव हृदय उत्तरोत्तर कोमल और संतोषी रहता है। चौथा आदमी पीत लेश्या वाला मंद कषायी है। वह कहता है कि व्यर्थं टहनी क्यों तोड़ी
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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