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________________ (२२) गणनायक राजा चेटक और सेनापति सिंह का वीर-समागम 'चेटकाख्योतिविख्यातो विनीतः परमार्हतः ॥३॥ तस्य देवी च भद्राख्या तयोः पुत्रा दशाभवत् । धनाख्यो दत्त भद्रांतावुद्रोऽन्यः सुदत्त वाक् ॥४॥ सिंहभद्रः सुकुंभोजोकंपनः सुपतंगकः प्रभंजनः प्रभासश्च धर्मा इव सुनिर्मलाः ॥५॥ __-उत्तर पुराण। वजिदेश में वैशाली नगरी थी । चेटक वहाँ वृजि-गण-तंत्र राज्य के अधिनायक थे। उनकी रानी का नाम सुभद्रा था। वे दोनों जिनेन्द्रभक्त थे। चेटक इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय-रत्न थे। वह थे भी बड़े पराक्रमी और वीर योद्धा । मगध से उनकी कई लड़ाइयां हुई थीं। साथ ही वह विनयी और श्रद्धाल श्रावक भी थे । अहिंसा धर्म के उपासक थे। जिनेन्द्र भगवान की पूजाअर्चा करना वह रणक्षेत्र में भी नहीं भूलते थे। मगव में राजगह के पास जब उनका राजशिविर पड़ा हुआ था, तब वहाँ उनकी पजा के लिये जिनायतन मौजद था। चेटक के दस पत्र थे, जिनके नाम धन दत्तभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सुकुंभोज, अकपन, सुपतंग प्रभंजन और प्रभास थे। यह प्राय, सब ही भ० महावीर के भक्त थे। सिंहभद्र संभवत. वजि-गण-सेना के नायक थे। वह पराक्रमी सेनापति थे। भ० महावीर की वन्दना करने में उन्हें अधिक रस आता था। उनकी सात बहनें थीं। सब से बड़ी त्रिशला प्रियकारिणी भ० महावीर की माता थीं।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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