SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसीलिये श्राने सय में स्त्रियों से मीना स्थान दिया, क्योंकि वह परम्परा से मोक्ष का कारण और पवित्र महावीर में दिव्य उपदेश का तत्कालीन महिला समान पर विशेष प्रभाव पना था। योगी न बहुत, बत्तीस हजार महिलाये सामारिक मोह बन्धनों और प्रेम-पाशों को तोड़कर 'प्रात्म-मयन को साधना में सलग्न हुई थी! उगा ज्ञान, उनका चारित्र वत्र बढ़ा चढ़ा था। आर्यिका चन्दना वीर सघ में प्रमुख साध्वी प्राचार्या यीं। उनके गाईस्थिक जीवन की नवी पाठफ पदले देख चुके हैं भ. महावीर ने उनका उद्धार किया था।चन्दना फौशान्वी वात्यजीवन विताती हुई वीर तीर्थ प्रवर्तन की बाट जोहती थीं। वीर-तीर्थ का प्रवर्तन होते ही वह 'प्राई और भगवान् मे याचना करने लगी दीक्षा दान की । वह बोली, 'श्रमणोत्तम प्रभो ! मैं जानती हूँ स्त्री-पर्याय निंद्य है । स्त्रियों की माया और दल प्रसिद्ध है, परन्तु नाथ | आपका शुभागमन तो सजन और दुर्जन-सव के लिये समान रीति से उपकार का है। मैं ससार से भयभीत हूँ-जिन दीक्षा दीजिये।' चन्दना ने वीर वाणी को सुन कर ज्ञान नेत्र पाया । वह समझी, 'पर्याय कोई भी अच्छी नहीं है। पह बन्धन है। सोने का बन्धन लोहे के बन्धन से अच्छा नहीं हो सकता-दोनों ही व्यक्ति की स्वाधीनता के घातक हैं। जो भव्य हैं-अपना और पराया हित चाहते हैं, वह किसी से द्वेष नहीं रखते-किसी को बुरा नहीं कहते । व्यक्ति के अच्छे और बरे संस्कार ही दृष्टव्य हैं। अच्छे संस्कार उपादेय हैंवरे त्याज्य ! अच्छे सस्कारों से ही पुरुष और स्त्री सजन और धर्मात्मा वनते है और मोक्ष की साधना करने में सफल होते हैं। वंशवृद्धि एक सपूत से होती है-राष्ट्र को उन्नत अनेक सपूत करते हैं । वे सपूत सुसस्कृत महिलाओं की गोदियों में ही पलते
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy