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________________ ( १६ ) मम्राट श्रेणिक विम्बसार और प्रभू वीर ! "विपुलाचल पर जिनपर आये, सुनत श्रवण नप श्रेणिक धाये । ममवसरन सुर धनद बनाये, जासु रुचिरता त्रिभुवन छाये ॥ गौतम गणधर अरथ सुनाये, धर्म श्रवण करि पाप नसाये । श्रेणिक सोलह भावन भाये, प्रकृति तीर्थकर बंध कराये ॥" कवि देवीदास भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास में सम्राट् श्रेणिक विम्बसार का वह चमकता हुआ नाम है कि जिससे भारतीय इतिहासका प्रामाणिक वर्णन प्रारम्भ होता है । जैन साहित्य में उनका अपूर्व स्थान है-वह भगवान महावीर के अनन्यभक्त और जिज्ञासु थे। जैन शास्त्र बताते हैं कि सम्राट् श्रेणिक ने भ० महावीर से साठ हजार प्रश्न किये थे। जैनी कहते हैं कि कदाचित् श्रेणिक महाराज तीर्थकर महावीर के समवशरण में नहीं होते और उपयुक्त उपयोगी प्रश्नों को न पूछते तो शायद आज वे जैनधर्म को ठीक से जानभीन पाते । यह मान्यता सम्राट श्रेणिक के सम्पर्क और महत्व को स्वयं स्थापित करती है। काश! आज वह सवही प्रश्नोत्तर मिलते होते मिलते हैं. पर थोड़े से। __ जब श्रेणिक मगध के राजसिंहासन पर बैठे, तब वह एक छोटा-सा राज्य था। राजगह उसकी राजधानी थी। श्रेणिक
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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