SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४७ ) वालों का उदासीनभाव से केश लांच करती थीं-मुनि भी इस वीरचर्या के अभ्यस्त थे। शरीर मे उन्हे ममता नहीं थी दुनिया मेहेती ही क्या? उसके संसर्ग से अलग रहकर जो महिलायें अपना कल्याण चाहतीं वे उनकी संगति से लाभ उठाती थी। विदुपी चन्दना के अतिरिक्त उनकी मामी यशस्वती भी विशेष प्रख्यात् साध्वी थी । चन्दना की बहन ज्येष्ठा ने उन्हीं से दीक्षा ली थी। इन यायिकाओं का त्यागमई जीवन पूर्ण पवित्रताका आदर्श था-वे महान पंडिता थी। उस समय वे देश मे विहार करके धर्म प्रचार और ज्ञान प्रकाश फैलाती थी। पद दलित और निराश महिलायों के लिये भी वीरसंघका द्वार खुला हुआ थावह उनके लिये शरणगृह था। राजगृहके राजकोठारी की पुत्री भद्रा कुन्दल केसा एक डाकू के रूप पर ऐसी मोहित हुई कि उसी से उसने व्याह कर लिया। परन्तु उसने देखा डाकू उससे नहीं उसके गहनों से अधिक मोह करता है । वह जीवन से निराश हुई और जैनसंघमे आकर आर्यिका होगई। उसने केशलोंच किया और एक सफेद साडी पहन ली-संघमे रहकर उसकी कायापलट होगई-वह एक विदुषी तपस्वी बनी । देश मे विहार करके उसने लोगों को प्रभावित किया। श्रावस्ती में प्रसिद्ध चौद्ध आचार्य सारीपुत्र से भी उसने वाद किया था । बौद्वशास्त्र मे इस प्रकार एक जैन साध्वी का वर्णन आर्यिका संव की उपयोगिता का ही प्रमाण है ! वीर संघमे जो दर्जा एक मुनि का था, आर्यिका काभी उपचार से उतना हीथा-वह भी 'महाव्रती' कही गई है !२ निसन्देह भ. महावीर का उपदेश सब ही के १. थेरीगाथा--भमव० पू० २५४-२६१ २. अष्टपाहुब प. ७३. वैसे आर्यिकायें पांचवे गुणस्थानवर्ती ही होती
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy