SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३३ ) अधिनायक कुणिक ने चम्पा मे भगवान् का स्वागत किया था और वह कौशाम्बी तक उनके साथ गया था। चम्पा मे ही राजा दधिवाहन, जो विमलवाहन मुनिराज के निकट पहले ही मुनि हो गये थे, भ० महावीर के संघ में सम्मिलित हुए थे। जब भ. महावीर का समवशरण कौशाम्बी नगरी में पहुंचा, तो वहाँ के नृपति शतानीक भगवान् के उपदेश से प्रभावित होकर मुनि हो गये थे। उदयन् राजा हुआ था। बनारस मे तीर्थंकर महावीर की विनयभक्ति वहाँ के राजा जितशन ने विशेष रूप में की थी । वहाँ के चूलस्तीपिया और सूरदेव नामक गहस्थों ने अपनी पत्नियों सहित श्रावक के व्रत ग्रहण किये थे। राजपुत्री मुण्डिका भी आर्यिका वृषभश्री के उद्योग से जैनी हुई थी। एकदा भगवान् का समोशरण कलिङ्ग देश मे भी सुशोभित हुआ था। कलिग के राजा जितशत्र भ० महावीर के पिता सिद्धार्थ के वहनोई थे । उन्होंने भगवान् केशुभागमन पर विशेष आनन्द मनाया था। अन्त मे वह निग्रन्थ मुनि हो गये थे। भगवान् का धर्म प्रवचन संभवत कुमारोपर्वत पर हुआ था । इस ओर के पुण्ड, बङ्ग, ताम्रलिप्ति आदि देशों में भी जिनेन्द्र वीर का विहार हुआ था और वहाँ के लोग अहिंसाधर्म के उपासक बने थे। सुदूर दक्षिण भारत मे भी भगवान महावीर का सुखद विहार हुआ था। जब भगवान हेमांग देश (मैसूरवर्ती देश) में पहुंचे तव वहाँ प्रतापी जीवन्धर राजा राज्य करता था। राजपुर उस की राजधानी थी, जिसके पास 'सुरमलय' नामक उद्यान था। १. संजैइ०, भा० २ खड १ पृष्ठ ६४-६५ २. संजैइ०, भा० २ खंड १ १०१६ -
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy