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________________ ( १२ ) केवलज्ञानोत्पत्ति और धर्मचक्र प्रवर्तन ! साम्राज्य-पद- शालिने । धर्म तीर्थं प्रवर्तिने ॥ "श्रीमते केवलज्ञान नमो वृताय मव्योधै -श्री सकल कीति' वारह वर्ष की कठिन तपस्या और घोर योगचर्या के पश्चात् भगवान् महावीर बर्द्धमान को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई वह सर्वज्ञ और सर्वदर्शी जीवन्मुक्त परमात्मा हुये | अब तीर्थकर प्रकृति का पूर्ण विकास उनके महान् व्यक्तित्व में हुआ लोक के लिए यह अवसर अपूर्व और महत्वशाली था । ज्ञान-सूर्य का उदय क्यों न लोक के लिये हितकर हो ? इसलिये आइये, पाठक, पहले ज्ञानसूर्य महावीर वर्द्धमान को नमस्कार कर लीजिये । काश विशुद्ध ध्यान और ज्ञान के दर्शन हमको और सबको हाँ ! दुनियां का अधकार प्रकाश से दूर होता है । मनुष्य जीवन मे अज्ञान अन्धकार है-ज्ञान प्रकाश है । मानव हृदय ज्ञानामृत का प्यासा है । वह जानता है कि दुनिया में इच्छित पदार्थ और सच्चा सुख यथार्थ ज्ञान से ही मिलता है-उस ज्ञान के अभाव में दुनिया उसी तरह तिमिराच्छन्न लोक में भटकती है जिस तरह नेत्रहीन पुरुष भटकता है। दुनिया में आज और इससे पहले महत्वाकाक्षा और धन पाने की तृष्णा के दुख, हिंसा का प्रकाण्ड ताण्डव और परावलम्विता के भयंकर दृश्य दिखाई पड़े हैं, वे केवल एक अज्ञान के कारण ही । इस सद्ज्ञान के अभाव में मनुष्य मनुष्य पर जुल्म ढाता है - प्राणी पर प्राणी के प्राणों को निर्दयता से मसल डालता है । भ० ·
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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