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________________ ( १०३ ) एक वार दीक्षा ग्रहण करके भ० सहावीर कुमार ग्राम के निकट आये और नासाग्रदृष्टि लगा, हाथ लंबे कर दोनों पैरों के बीच मे चार अगुल की दूरी रखकर कायोत्सर्ग मुद्रा माढ़ करे ध्यान मे अचल हो गये । वहाँ पास ही में एक खेत था । किसान उसे जोत रहा था। शाम हुई तो उसे अपनी गाय-भैंसे दूहने के लिए घर जाना पडा । वह अपने बैलों को ध्यानमग्न प्रभु महावीर के पास छोड़ गया । किसान ने घर को पीठ फेरी, उधर बैलों को आजादी मिली । वे जंगल मे जिधर को मुँह उठा चले गये; क्योंकि प्रभू तो कायोत्सर्ग व्रत लिए खड़े थे— उनकी अन्तर्दृष्टि थी । वह बाहर की किसी वस्तु को कैसे देखते १ आत्मस्वरूप-स्पन्दन की अन्तर्ध्वनि मे बाहर की आवाज कैसे सुनते ? दुनिया के कारनामों से वह निर्लिप्त थे—त्रीतराग थे । किसान लौटा - उसने अपने वैल वहां नहीं पाये । उसने प्रभू से पूछा, पर कोई उत्तर न पाया । वह जंगलों मे खोजने लगा । रातभर भटकता फिरा, पर उसे वैलों का पता न चला । थका सांदा पौ फटती देखकर वह अपने खेत पर लौटा। वहां क्या देखता है कि भ० महावीर वैसे ही ध्यानलीन खड़े हैं और उनके चरणों मे बैल बैठे हुये हैं । वैलों के मिलने की प्रसन्नता उसके श्रम ने काफूर कर दी ! आकुल व्याकुल वह बौखला गया - क्रोध को वह रोक न सका । उसने भ्रमवश समझा कि यह साधुवेपी पाखंडी है - इसने मुझसे छल किया है— इसे दम्भ का मजा चखाऊं ! जो उसने सोचा वह कर दिखाया ! प्रभू वीर पर उसने मनमाना उपसर्ग किया ! इन्द्र ने यह अन्याय देखा; वह वहां आया और किसान से बोला, "रे मूर्ख ! तू यह क्या कर रहा है ? क्या तू जानता नहीं कि यह महात्मा राजपिं वर्द्धमान हैं। ये अपना ही राज्य - ऐश्वर्य, धन-धान्य, सब कुछ छोड़ चुके हैं। तब तेरे बैलों का यह ܘ
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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