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________________ (६८) तो मानव को दानव बनाने वाला था! वलात् किसीको जीवनभर के लिये दास बनाकर रखना मानवता नहीं, बल्कि कर पाशविकता है। भ० महावीर ने मुंह से नहीं बल्कि अपने कर्म से चन्दना का उद्धार करके दास प्रथा का अन्त करने का आदशे उपस्थित किया। जब रानी मृगावती ने उसे देखा तो वह अपनी ऑखों पर विश्वास न कर सकी। वह तो उसकी छोटी बहन थी। उसकी प्रसन्नता का वारपार न था। वह चन्दना को राज महल ले गई। चन्दना ने अपने उद्धार पर संतोष की सास ली जरूर, परन्तु उसने नेत्र पसार कर देखा, दुनिया मे उससी दुखिया बहुत हैं । काश भ. महावीर सवका उद्धार करें। वह उस दिन की प्रतीक्षा में रही। यह तो एक उदाहरण है। अपने भ्रमण में योगिराट् महावीर ने अपने मौन और शात रूप मे न जाने किन २ जीवों का उद्वार किया था। अस्थिग्राम मे जब उन्होंने पहला चौसासा मादा तो वहाँ का क्र र यक्ष उनके सहनशील शांत रूप से प्रभावित होकर अपनी रता खो बैठा। अस्थिपास निवासियों का संकट स्वयमेव दूर हो गया । अब बन उन्हे नहीं सताता था । श्वेताम्बी नगरी के निकट एक दृष्टिविप सपे को शान्त बनाकर उन्होंने लोगों को अभय बनाया था। जब वह एक दफा गंगानदी की रेती को पवित्र करते हुये जा रहे थे, तब उनके पद चिन्हों को पुष्प नामक एक ज्योतिषी ने देख कर समझा था कि कोई चक्रवर्ती वहाँ से गया है। वह आगे बढ़ा और देखा कि एक अशोक वृक्ष के नीचे प्रभू महावीर कायोत्सर्ग खड़े हुये हैं। उनके मस्तक पर मुकुट चिन्ह और भुजाओं में चक्र चिह्न उसने देखे । ज्योतिपी अवाक रहा सोचने लगा कि 'यह आश्चर्य है-'चक्रवर्ती के लक्षणों से युक्त यह पुस्प भिक्षुक है | क्या सामुद्रिक शास्त्र झठा है ? किन्तु श्वे
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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