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________________ ( ६४ ) जा सकती है। आलभिका आज कल ऐरवा कहा जाता है । जो इटावा से उत्तर पूर्व में सत्ताईस मील दूर अनुमान किया गया है । किन्तु राजगृह आज भी अपने प्राचीन नाम से प्रसिद्ध है और बिहार प्रान्त का एक मुख्य तीर्थ है । वहां से भ० महावीर लाढ़देश को प्रस्थान कर गये थे और वहीं पर उन्होंने वह चौमासा विताया था । प्राचीन समय के आर्य देशों मे लाढ़ भी एक था, परन्तु जिस समय भ० महावीर वहां पहुँचे थे, उस समय वहाँ अनार्य लोग बसे हुए थे। भारत में उस समय आर्य और अनार्यों की भी एक विकट समस्या थी । इस कारण लाढ़ के अनार्यों ने भगवान् महावीर के प्रति अत्यन्त कठोर बर्ताव किया था । अपने शिकारी कुत्तों को उन पर छोड़ा था और जितने भी शारीरिक कष्ट वह पहुँचा सकते थे पहुँचाये थे, परन्तु भगवान् ने उनको समभाव से सहन किया था - वह योगपथ से जरा भी विचलित नहीं हुये थे- उन कष्टों से उनकी आत्मा का उत्कर्ष हुआ था । लाढ़देश की राजधानी कोटिवर्ष आज तक बंगाल के दीनाजपुर जिले का वाणगढ़ बताया जाता है । यही नहीं किन्तु लाढ़ देश में चौमासा माढ़कर भ० महावीर ने मौन अनुष्ठान द्वारा आर्य-अनार्य संघर्ष का अन्त किया था । योगिराट् महावीर के सम्मुख हिंसक उपायों को निरर्थक हुआ देख कर वे अनार्य अहिंसा के महत्व को अनायास समझ गये और अहिंसा के भक्त बने । उपरान्त वहाँ से भगवान् भ्रमण करते हुये अगला चातुर्मास विताने के लिये श्रावरती पहुॅचे संयुक्तप्रान्त के गोरखपुर जिले का सहेठ महेठ ग्राम वह प्राचीन श्रावस्ती है, जो प्रभु महावीर की पादरज से पवित्र हो चुकी है। श्रावस्ती के पश्चात् भ० महावीर का चौमासा श्वेताम्वरीय मतानुसार उनके मातुलनगर विशाला में हुआ और वहाँ से वह अपना बारहवाँ चौमासा विताने फिर चम्पापुर में आ विराजे थे ।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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