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________________ (८६ ) करके परम १ सुख पाने के लिये उन्होंने दिगम्बरीय दीज्ञा धारण करली! ऊँचे ऊँचे विशाल मन्दिरों, राजभोगों, रसभरी रमणी के हासपरिहासों और स्वामीभक्त प्रना के मोहपाशों को तोड़कर वे वनवासी बन गये। माता त्रिशला ने सुना तो वह पुत्र वियोग से विह्वल हो गई, परन्तु वह महावीर के अन्तरङ्ग को जानती थीं। वह यह भी जानती थीं कि महावीर का जन्म मेरे लिये ही नहीं और नहीं ही बात क्षत्रियों के लिये हुआ है, वल्कि वह लोक की विभति है लोककल्याण के कर्ता हैंलोकोद्धार के लिये ही वे जन्मे हैं। एक सच्ची चत्रियाणी की वरह उन्होंने वीरभाव प्रदर्शित किया और बड़े गर्व से अपने लाडले पुत्र को दीक्षाग्रहण करने के लिये विदा किया। दीक्षाग्रहण के इस अपूर्व अवसर पर युवक महावीर की १. श्वेताम्मरीय 'कल्पसूत्र' में कथन है कि यद्यपि भ० महावीर दिगम्बर वेष में रहे थे, परन्तु इन्द्र का दिया हुअा 'देवदूष्य' वस्त्र धारण करते थे । दीक्षा के दूसरे वर्ष में उन्होंने उमका भी त्याग कर दिया था और वे अचेलक ( नम्न ) हो गये थे। इस पर पं० नाथूराम जी प्रेमी लिखते हैं कि "भगवान् के समयवर्ती श्राजीवक आदि सम्प्रदाय के साधु भी नग्न ही रहते थे। पीछे जब दिगम्बरी वृत्ति साधनों के लिए कठिन प्रतीत होने लगी होगी और इसलिए देशकाजा. नुसार उनके लिए वस्त्र रखने का विधान किया गया होगा, तय यह देवदूप्य की कल्पना की गई होगी । भगवान् रहते थे नग्न, पर लोगों को वस्त्र सहित ही दिखलाई देते थे, श्वेताम्बर सम्प्रदायके इस अतिशय का फलितार्थ यही है कि भगवान् नग्न रहते थे।" (ले० हि०भा० १३) धौद और ब्राह्मण शास्त्रों से भी यही सिद्ध होता है।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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