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________________ ( ७६ ) उन्होंने विवाह का प्रस्त व रखना उचित समझा। परन्तु महाराज सिद्धार्थ उनकी उदासीनवृत्ति जानते थे - उन्होंने रानी त्रिशला के सुपुर्द यह काम किया। रानी ने राजकुमार वर्द्धमान को बुला जिनेन्द्र वीरस्य समुद्भवोत्सवे, तदागतः कुण्डपुरं सुहृद्वृतः । सुपूजितः कुण्डपुरस्य भूभृता नृपोऽयया खण्डलतुर्यावक्रमः ||७|| यशोदययां सुतया यशोदया पवित्रत्या वीरविवाह मंगलम् | अनेक कन्या परिवारयाऽऽरुहत्समीक्षितु तुरं गमनोरथं तदा ||८|| स्मितेऽथ नाथे तपसि स्वयमुवि प्रजात कैवल्य विशाललोचने । " जगद्विभूत्यै विहरत्यपि क्षिति क्षितिं विहाय स्थितवांस्तपस्ययं ॥६॥ कुमार वर्द्धमान का मन तप-रमणो ने मोह लिया था । वह विवाह कैसे करते ? किन्तु श्वेताम्बरीय शास्त्रों में लिखा है कि वर्द्धमान स्वामी का विवाद राजा समरवीर की कन्या यशोदा के साथ हुआ था, जिससे उनके एक पुत्री हुई थी । दिगम्बर और श्वेताम्बर वाम्नायों का यह मतभेद अनूठा है, क्योंकि दिगम्बराम्नाय में कई एक तीर्थङ्करों के विवाह हुए वर्णित हैं। मालूम ऐसा होता है कि श्वेताम्बरियों ने सिद्धान्त भेद को प्रकट करने के लिये अन्तिम तीर्थकर को विवाहित चित्रित किया है, क्योंकि दिगम्बर जैनी एक तीर्थकर के पुत्री का होना स्वीकार नहीं करते। उस पर खास बात यह है कि स्वयं श्वेताम्बरी प्राचीन ग्रन्थों, जैसे 'कल्पसूत्र' और 'श्राचाराद्वसूत्र' में भ० महावीर के विवाह का उल्लेख नहीं है । श्वेताम्बरीय 'श्रावश्यक नियुक्ति' में स्पष्ट लिखा है कि भ० महावीर स्त्री पाणिग्रहण और राज्याभिषेक से रवि कुमारावस्था में ही दीक्षित हुये थे ( नयइत्यिाभिसे कुमारविवासमि पव्त्रइया । ) अतएव वल्लभीनगर में जिस समय श्वे० श्रागमग्रन्थ देवर्द्धिगणि तमाश्रमण द्वारा संशोधित और सस्कारित किये गये थे, उस समय प्राचीन श्राचार्यों के नामावली चूर्णि और टोकाओं में विवाह की बात बढ़ाई गई संभव
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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